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गगनभेदी ढोलों की आवाज़ पर
थिरकती लावणी
और संग संग थिरकती ये धरा,
बारिश की फुहार,
गुलाल की बहार,
मस्ती में मगन गोविंदाओं की टोली,
बादलों के उस पार जाती दही हांडी,
और दही हांडी के पार जाती ,
गोविंदाओं की ऊँची मीनारें,
पल भर में ढह जाती बालू के ढेर सी,
अगले ही पल फिर उठ जाती शेर सी,
न डरती, न थकती, हांडी तोड़कर ही दम भरती,
मस्ती में मगन गोविंदाओं की टोली..
This picture was submitted by Smita Haldankar.
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