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जिस राह पर…. हर बार मुझे….
अपना कोई …छल-ता रहा….
फिर भी…न जाने क्यु में…
उस रहा ही…. चलता रहा….
सोचा बहोत…इस बार….
रोशनी नही…धुँआ दुंगा…
लेकिन…क्या करू…??…
चिराग था…. फितरत से….
जलता था और जलता रहा जलता रहा….
दोस्तो….
बड़प्पन वह गुण है…
जो पद से नहीं ” संस्कारों “से प्राप्त होता है….
घमण्ड के अंदर….
सबसे बुरी बात यह होती है कि….
वो आपको कभी महसूस होने नहीं देगा कि “आप गलत हो “…..
क्योंकि….
बहस सिर्फ यह सिद्ध करती है…. कि….
” कौन सही है “….
जबकि….बातचीत यह तय करती है…. कि ” क्या सही है “….
इसलिए…दोस्तो….
बेवजह अच्छे बनो….
वजह से तो सब बने फिरते है…
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