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“जो मनुष्य बेटी की महता को समझौता सिर्फ वही जनता है की
बेटी से ही घर रोशन है,
बेटी से ही परिवार
आबाद है,
बेटी से ही आंगन में
खुशी है और प्यार है।”
राष्ट्रीय बालिका दिवस
सब की माएँ भी बेटियाँ ही थीं
आज बेटी बनी मुसीबत क्यूँ
मर्ग़ूब असर फ़ातमी
किसी मूर्ख ने इस शब्द को गढ़ दिया हैं,
जिसने नारी को अबला कह कर अपमानित किया है.
जब बेटियां पिता का आँगन छोड़ देती है,
कई ख्वाहिशें वही पर बेजान छोड़ देती है.
इक लड़की जब बेटी से बहू हो जाती हैं,
जिम्मेदारी के उलझन में जीना भूल जाती है.
शर्त लगी थी खुशियों को, एक ही लफ़्ज में लिखने की,
वो किताबें ढूँढते रह गये, मैंने ‘बेटी’ लिख दी.
चाँद सी बेटियों को सूरज बनाने लगे है,
बुरी नजर से घूरने वाले कतराने लगे हैं.
करते हो बेटी से प्यार,
करो बहु से प्यार,
क्यूँ करते हो दहेज़ की माँग
बहु बेटी एक समान.
समाज के इस रीत में है बुराई,
जो बेटी को पल भर में बना देता है पराई.
कारवाँ जब शुरू हुआ था तो
साथ कई लोगों की टोली थी,
मंजिल तक पहुँचने वाली
बस लड़की वो अकेली थी.
मर्द हो तो तुम्हारी कौम का इतना तो रौब हो,
बगल से निकले कोई लड़की तो बेख़ौफ़ हो.
जो लड़की खुद को शिक्षित बनाएगी,
वही पूरी दुनिया को अपनी ताकत दिखाएगी.
नये दौर में, नया जूनून भर लो,
कोई अबला न कहे, कुछ ऐसा कर लो.
This picture was submitted by Smita Haldankar.
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