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मीरा बाई 16 वी शताब्दी की हिन्दू आध्यात्मिक कवियित्री और भगवान कृष्णा की भक्त थी। लोगो के अनुसार संत मीराबाई एक आध्यात्मिक कवियित्री थी और उत्तर भारतीय हिन्दू परंपरा के अनुसार वह एक भक्ति संत थी।
संत मीराबाई दिन-रात कृष्णा भक्ति में ही लीन रहती और कृष्णा को ही अपना पति मानती थी। उन्होंने बहुत से लोकसंगीत किस्से और संचरित्र लेखन की कई कहानिया लोगो के सामने प्रस्तुत की थी।
भगवान कृष्णा के रूप का वर्णन करते हुए संत मीराबाई हजारो भक्तिमय कविताओ की रचना की है। ऐसी कविताओ को भारत में साधारणतः भजन कहा जाता है। हिन्दू किला चित्तौड़गढ़ किला साधारणतः मीरा बाई की याद के लिये भी प्रसिद्ध है। मीरा बाई का जीवन किसी धार्मिक फिल्म से कम नही है।
पूरा नाम – मीराबाई
जन्मस्थान – कुडकी (राजस्थान)
पिता – रतनसिंह
माता – विरकुमारी
विवाह – महाराणा कुमार भोजराज (Husband of Meerabai)
राजघराने में जन्म और विवाह होकर भी मीराबाई को बहुत-बहुत दुख झेलना पड़ा था। इस वजह से उनमे विरक्तवृत्ती बढ़ती गयी और वो कृष्णभक्ति के तरफ खिची चली गयी। उनका कृष्णप्रेम बहुत तीव्र होता गया। मीराबाई पर अनेक भक्ति संप्रदाय का प्रभाव था। इसका चित्रण उनकी रचनाओं में दिखता है।
“पदावली” यह मीराबाई की एकमात्र प्रमाणभूत काव्यकृती है। ‘पायो जी मैंने रामरतन धन पायो’ यह मीरा बाई की प्रसिद्ध रचना है।
मीराबाई के भाषाशैली में राजस्थानी, ब्रज और गुजराती का मिश्रण है। पंजाबी, खड़ीबोली, पुरबी इन भाषा का भी मिश्रण दिखता है। मीराबाई के रचनाये बहुत भावपूर्ण है। उनके दुखों का प्रतिबिंब कुछ पदों में दीखता है। गुरु का गौरव, भगवान की तारीफ, आत्मसर्मपण ऐसे विषय भी पदों में है। पुरे भारत में मीराबाई और उनके पद ज्ञात है।
संत मीराबाई ने चार ग्रंथों की रचना की:
नरसी का मायरा
गीत गोविंद टीका
राग गोविंद
राग सोरठ के पद
इसके अलावा मीराबाई के गीतों का संकलन “मीरांबाई की पदावली‘ नामक ग्रन्थ में किया गया है।
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