SHRI MAHAVIR CHALISA

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श्री महावीर चालीसा

दोहा :
सिद्ध समूह नमों सदा,
अरु सुमरूं अरहन्त।
निर आकुल निर्वांच्छ हो,
गए लोक के अंत ॥

मंगलमय मंगल करन,
वर्धमान महावीर।
तुम चिंतत चिंता मिटे,
हरो सकल भव पीर ॥

चौपाई :
जय महावीर दया के सागर,
जय श्री सन्मति ज्ञान उजागर।

शांत छवि मूरत अति प्यारी,
वेष दिगम्बर के तुम धारी।

कोटि भानु से अति छबि छाजे,
देखत तिमिर पाप सब भाजे।

महाबली अरि कर्म विदारे,
जोधा मोह सुभट से मारे।

काम क्रोध तजि छोड़ी माया,
क्षण में मान कषाय भगाया।

रागी नहीं नहीं तू द्वेषी,
वीतराग तू हित उपदेशी।

प्रभु तुम नाम जगत में साँचा,
सुमरत भागत भूत पिशाचा।

राक्षस यक्ष डाकिनी भागे,
तुम चिंतत भय कोई न लागे।

महा शूल को जो तन धारे,
होवे रोग असाध्य निवारे।

व्याल कराल होय फणधारी,
विष को उगल क्रोध कर भारी।

महाकाल सम करै डसन्ता,
निर्विष करो आप भगवन्ता।

महामत्त गज मद को झारै,
भगै तुरत जब तुझे पुकारै।

फार डाढ़ सिंहादिक आवै,
ताको हे प्रभु तुही भगावै।

होकर प्रबल अग्नि जो जारै,
तुम प्रताप शीतलता धारै।

शस्त्र धार अरि युद्ध लड़न्ता,
तुम प्रसाद हो विजय तुरन्ता।

पवन प्रचण्ड चलै झकझोरा,
प्रभु तुम हरौ होय भय चोरा।

झार खण्ड गिरि अटवी मांहीं,
तुम बिनशरण तहां कोउ नांहीं।

वज्रपात करि घन गरजावै,
मूसलधार होय तड़कावै।

होय अपुत्र दरिद्र संताना,
सुमिरत होत कुबेर समाना।

बंदीगृह में बँधी जंजीरा,
कठ सुई अनि में सकल शरीरा।

राजदण्ड करि शूल धरावै,
ताहि सिंहासन तुही बिठावै।

न्यायाधीश राजदरबारी,
विजय करे होय कृपा तुम्हारी।

जहर हलाहल दुष्ट पियन्ता,
अमृत सम प्रभु करो तुरन्ता।

चढ़े जहर, जीवादि डसन्ता,
निर्विष क्षण में आप करन्ता।

एक सहस वसु तुमरे नामा,
जन्म लियो कुण्डलपुर धामा।

सिद्धारथ नृप सुत कहलाए,
त्रिशला मात उदर प्रगटाए।

तुम जनमत भयो लोक अशोका,
अनहद शब्दभयो तिहुँलोका।

इन्द्र ने नेत्र सहस्र करि देखा,
गिरी सुमेर कियो अभिषेखा।

कामादिक तृष्णा संसारी,
तज तुम भए बाल ब्रह्मचारी।

अथिर जान जग अनित बिसारी,
बालपने प्रभु दीक्षा धारी।

शांत भाव धर कर्म विनाशे,
तुरतहि केवल ज्ञान प्रकाशे।

जड़-चेतन त्रय जग के सारे,
हस्त रेखवत्‌ सम तू निहारे।

लोक-अलोक द्रव्य षट जाना,
द्वादशांग का रहस्य बखाना।

पशु यज्ञों का मिटा कलेशा,
दया धर्म देकर उपदेशा।

अनेकांत अपरिग्रह द्वारा,
सर्वप्राणि समभाव प्रचारा।

पंचम काल विषै जिनराई,
चांदनपुर प्रभुता प्रगटाई।

क्षण में तोपनि बाढि-हटाई,
भक्तन के तुम सदा सहाई।

मूरख नर नहिं अक्षर ज्ञाता,
सुमरत पंडित होय विख्याता।

सोरठा :
करे पाठ चालीस दिन नित
चालीसहिं बार।
खेवै धूप सुगन्ध पढ़,
श्री महावीर अगार ॥

जनम दरिद्री होय अरु
जिसके नहिं सन्तान।
नाम वंश जग में चले
होय कुबेर समान ॥

This picture was submitted by Smita Haldankar.

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