Durga Ashtami Wishes

May maa Durga shower her choicest blessings
on you now and always.
Happy Maha Ashtami!

Durga Puja is a blessed time.
Rejoice in the glories of Maa Durga
Celebrate all the blessings of Goddess
With your friends, family and acquaintances.
Happy Durga Ashtami.

May the divine blessings of the goddess
be with you on the auspicious day of
Ashtami and always!
Wish you a Happy Durga Ashtami!

Fortunate is the one who has learned to admire, but not to envy.
Good Wishes to you and your loved ones for a joyous Durga Puja,
with plenty of Peace and Prosperity.
Have a great Maha Ashtami!

On this auspicious day of Durga Ashtami,
My greetings to you and your family,
Happiness and betterment at all levels,
For today and all time to come,
Success at the end of all your pursuits,
In the most truthful way.

As Goddess Durga returns home,
I wish she brings good luck and happiness
for you and your family.
Wishing you a Happy Maha Ashtami!

Sending my warm wishes for a happy Maha Ashtami!
May the day bring you good fortune and success.
May Maa Durga shower her choicest blessings
on you today and forever.

May this Ashtami brighten your day and night,
May it add colour to your life,
May it remove all the sorrows and worries from your life,
And give you the strength and patience to face every difficulty,
May it fill your life with lots of joy and well-being,
Have a great Maha Ashtami!

May this auspicious day bring prosperity and joy,
The atmosphere is filled with love and happiness,
Therefore, I wish you a great Maha Ashtami!

May this Ashtami,
Maa Durga empower you with her nine blessings of
name, glory, health, wealth, happiness, kindness, strength, faith and wisdom!
Happy Maha Ashtami!

पितृ पक्ष कविता

🙏🌹🙏
*पितर जी को पुष्पांजलि*
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
🙏पितर चरण में नमन करें,
ध्यान धरें दिन रात ।
कृपा दृष्टि हम पर करें,
सिर पर धर दें हाथ ॥

🙏ये कुटुम्ब है आपका,
आपका है परिवार ।
आपके आशिर्वाद से,
फले – फूले संसार ॥

🙏भूल -चूक सब क्षमा करें,
करें महर भरपूर ।
सुख सम्पति से घर भरें,
कष्ट करें सब दूर ॥

🙏आप हमारे हृदय में,
आपकी हम संतान ।
आपके नाम से हैं जुड़ी,
मेरी हर पहचान ॥

🙏आपका ऋण भारी सदा,
नहीं चुकाया जाय ।
सात जनम भी कम पड़े,
वेद पुराण बताय;॥

🙏हर दिन हर पल आपसे,
माँगे ये वरदान ।
वंश बेलि बढती रहे,
बढ़े मान सम्मान ॥

🙏घर पैण्डे में आप बिराजें,
ये ही अरज करें ।
कहत भक्त हम शरण आपके,
निशदिन मेहर करें ॥
~~~ *पितरजी को नमन* ~~~
*🙏🌹 🌹🙏*
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

पितृ पक्ष संदेश

“श्राद्ध खाने नही आऊंगा कौआ बनकर
जो खिलाना है अभी खिला दे”
_वृद्ध पिता

ज़िंदा रहते में दो वक़्त की रोटी उन बूढो को नसीब न हुई
आज ज़माना उनके नाम पे कौवो को खाना खिला रहे है

कौवों और पंडों की क्षुधा पुर्ण करके स्वर्ग पहुंचाया जा रहा है खाना
यह सब देखकर जाने से पहले त्वरित डाक भी बनाने लगे हैं बहाना
बोलते हैं हम तो तुरंत जाते हैं फिर भी बहुत देर हो जाती है
क्यों नहीं उसी प्रणाली से डाक व्यवस्था बहाल की जाती है

चलो पितृपक्ष के बहाने ही सही..
इस भागदौड भरी जिंदगी से कुछ समय हम/आप अपने पितरों का पूजा करते उनको याद करते हैं.. उनके नाम से दान-पुण्य और जरूरत का सामान पँडित या किसी जरूरतमंद को देते हो। लेकिन मेरे मानना है ये पुण्य आपको तभी लगेगा जब आपने अपने पितरों की जीते-जी उनको कोई दुख ना पहुँचाया हो, उनको बोझ ना समझा हो…..
अर्थात अगर आप आज अपने घर के बड़े बूढों के साथ समय व्यतीत करे उनको ये एहसास ना होने दे कि वो बूढ़े है,, अब उनको आपकी नही… बल्कि आपको आज भी, उनकी जरूरत है। ये सब करोगे वही सबसे पुण्य होगा और यही फलदायक होगा….
” सही मायने मे तर्पण है।”

इज्जत भी मिल सी
दोलत भी मिल सी
सेवा करो मां बाप री
जन्नत भी मिल सी

ये पितृपक्ष भी न जाने कितनी
यादों को संग लाती है
पापा संग बिताये पल और मनुहार
तिल-तिल सजा जाती है
यूँ लगता है कि वो दूर हैं
फिर भी पास है मेरे
तर्पण करती हूँ अंजुलि भर
अपने आंसुओं से मेरे

ओ पितृपुरुष!!
आप सदैव विद्यमान हैं
इस घर के प्रत्येक कोने में
प्रत्येक वस्तु-स्थान में
कण कण में जल-स्थल में
विषय-आशय अपरा-परा में
आज भी निहित है
आप इस घर की शिक्षा-दीक्षा
संस्कार-संस्कृति में
देव-स्वरूप विद्यमान हैं
आप हर स्थिति में
हे पितृपुरुष!!
आप सभी विपत्तियों से
हमेशा बचाव करें
आपको इस वर्ष के लिए
अश्रुपूर्ण विदाई🙏🙏🙏

वो समय निष्ठुर था
पर जाना आपका भी निश्चित था
विधाता के समक्ष
समय का हारना सुनिश्चित था
श्रद्धा सुमन से
वंदना करूँ मैं आपके चरणों की
आप जहां भी रहें
खुश रहें यही कामना मेरी

परंपराओं में भी दोहरी मानसिकता
आस्तिक नहीं अपनाया नास्तिकता
पुरुषों के लिए श्राद्ध तर्पण पिंडदान
स्त्रियों का किया, यहाँ घोर अपमान
पुत्र भूला, सभ्यता-संस्कृति-संस्कार
पुत्रियों ने निभाई सांस्कृतिक परंपरा

खंड-खंड सामाजिक ताना-बाना को नव सृजित करना होगा
पुत्रियों का भी स्थान,, पुत्र सम समाज में निहित करना होगा
नहीं तो, एक दिन विद्रोह यह प्रबल होगी
हम चुनेंगे अपना स्थान जो अव्वल होगी

शबे-बारात में जैसे नूर उतरकर है आया
इस तरह श्राद्ध–पितृपक्ष दस्तूर है आया
पितरों पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान
भक्ति, शक्ति, मुक्ति युक्ति तृप्ति महादान

पुत्र ही देगा मुखाग्नि पिंड तर्पण और मोक्ष
पुरुष-प्रधान समाज की गढ़ी हुई है ये सोच
राजा यज्ञ करवाते हैं पुत्र प्राप्ति के निमित्त
अन्न धन वैभव ऐश्वर्य सर्व कर्म पुत्र निहित

यूँ ही नहीं मनाते हैं श्राद्ध-पितृपक्ष शुभ कार्य वर्जित करके
हम शोक-संवेदना से संलिप्त होते हैं हृदय उत्सर्जित करके

एक लोटा जल से भी‌ ऋणमुक्त हुआ जा सकता है
पितरों पूर्वजों का तर्पन ऐसे भी किया जा सकता है

यथा संभव–तथा लाभ
भुक्ति-मुक्ति पितृ यथार्थ

आया हूँ इस लोक भ्रमण को
पिंडदान और मुक्त तर्पण को
पूर्वज हूँ तेरा इतना फर्ज निभा देना
एक लोटा गंगाजल मुझे पिला देना
विष्णुपद में मुझे बुलाकर मेरा पिंडदान करा देना
उसके बाद मेरे नाम का तर्पण फल्गू में बहा देना
पितृपक्ष में बड़ी आस से तेरे घर को आया हूँ
श्राद्ध पक्ष में विश्वास लेकर द्वार पर आया हूँ
मेरी मुक्ति के निमित्त ये संस्कार करा देना
लोक परलोक शुद्ध मुक्त सत्य करा देना
मेरी क्षुधा के निमित्त भरपेट भोजन
कर्मकांडीय ब्राह्मण को खिला देना
एक और पत्ते में भोजन को तुम
गौ, कौवा, कुत्ते भी रख आना
फिर थोड़ा भोजन तुम करना
मेरा आशिर्वाद ग्रहण करना

पितृपक्ष के पावन सोलह दिन
अधर्म अहिंसा कुकर्म छल बिन

भक्ति मुक्ति शक्ति ग्रहणकाल
मानव जीवन सदा खुशहाल

पितृ पक्ष शुभकामना संदेश

श्राद्ध पक्ष के शुभ अवसर पर सभी लोगों को उनके पितरों का आशीर्वाद प्राप्त हो। यही है हमारी शुभकामना।

श्राद्ध, अपने पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं। श्राद्ध पक्ष की शुभकामना।

पितरों के निमित्त विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है, उसी को ‘श्राद्ध’ कहते हैं।

ब्रह्म पुराण के अनुसार जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित (शास्त्रानुमोदित) विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है।

मृत व्यक्ति के लिए जो श्रद्धायुक्त होकर तर्पण, पिण्ड, दानादि किया जाता है, उसे ‘श्राद्ध’ कहा जाता है और जिस ‘मृत व्यक्ति’ के एक वर्ष तक के सभी और्ध्व दैहिक क्रिया कर्म संपन्न हो जायें, उसी की ‘पितर’ संज्ञा हो जाती है।

मिताक्षरा के अनुसार, पितरों का उद्देश्य करके (उनके कल्याण के लिए) श्रद्धापूर्वक किसी वस्तु का या उससे सम्बन्धित किसी द्रव्य का त्याग श्राद्ध है।

कल्पतरु के अनुसार, पितरों का उद्देश्य करके (उनके लाभ के लिए) यज्ञिय वस्तु का त्याग एवं ब्राह्मणों के द्वारा उसका ग्रहण प्रधान श्राद्धस्वरूप है।

याज्ञवल्क्यस्मृति का कथन है कि पितर लोग, यथा–वसु, रुद्र एवं आदित्य, जो कि श्राद्ध के देवता हैं, श्राद्ध से संतुष्ट होकर मानवों के पूर्वपुरुषों को संतुष्टि देते हैं।