Sharad Purnima Shayari

Sharad Purnima Shayari

संग गोपिया राधा चली कृष्ण के द्वार
कान्हा के सांवले रंग की बिखरे छटा अपार
पूर्णिमा के उज्जवल प्रकाश मिली वो कृष्ण से
रास लीला आज होगी और नाचेगा सारा संसार
शरद पूर्णिमा की हार्दिक बधाई

शरद की बादामी रात में
नितांत अकेली मैं
चांद देखा करती हूं तुम्हारी
जरूरत कहां रह जाती है.

चांद जो होता है मेरे पास
‘तुम-सा’ पर मेरे साथ
मुझे देखता, मुझे सुनता मेरा चांद
तुम्हारी जरूरत कहां रह जाती है।

शरद पूर्णिमा की रात लेकर आती है अपने साथ अमृत वर्षा
जो भर देती है हमारे जीवन को सुख और समृद्धि से
आशा है ये त्यौहार आपके जीवन में नयी उमंग लेकर आये
आप सभी को शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें

आओ साथ मिलकर शरद पूर्णिमा के चन्द्रमा का आशीर्वाद
सर नवा कर पाएं और जीवन को समृद्ध बनायें
शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं

कल पिघल‍ती चांदनी में
देखकर अकेली मुझको
तुम्हारा प्यार
चलकर मेरे पास आया था
चांद बहुत खिल गया था।
आज बिखरती चांदनी में
रूलाकर अकेली मुझको
तुम्हारी बेवफाई
चलकर मेरे पास आई है
चांद पर बेबसी छाई है।
कल मचलती चांदनी में
जगाकर अकेली मुझको
तुम्हारी याद
चलकर मेरे पास आएगी
चांद पर मेरी उदासी छा जाएगी।

शरद की श्वेत रात्रि में
प्रश्नाकुल मन
बहुत उदास
कहता है मुझसे
उठो ना
चांद से बाते करों,
और मैं बहने लगती हूं
नीले आकाश की
केसरिया चांदनी में,
तब तुम बहुत याद आते हो
अपनी मीठी आंखों से
शरद-गीत गाते हो…!

शहदीया रातों में
दूध धुली चांदनी
फैलती है
तब
अक्सर पुकारता है
मेरा मन
कि आओ,
पास बैठों
चांद पर कुछ बात करें।
शरद चांदनी की छांव तले
आओ कुछ देर साथ चलें।

चांद नहीं कहता
तब भी मैं याद करती तुम्हें
चांद नहीं सोता
तब भी मैं जागती तुम्हारे लिए
चांद नहीं बरसाता अमृत
तब भी मुझे तो पीना था विष
चांद नहीं रोकता मुझे
सपनों की आकाशगंगा में विचरने से
फिर भी मैं फिरती पागलों की तरह
तुम्हारे ख्वाबों की रूपहली राह पर।

आज शरद पूर्णिमा
शरद का चाँद
आज अमृत बरसेगा ॥
प्रासादों के दीर्घ अजिर में
महलों के विस्तीर्ण छतों पर ।
भर-भर खीर रखे जायेंगे
रजत कटोरे रात-रात भर ॥

जिन में चाँद
अमृत घोलेगा
राज कुँवर फिर उसे छकेगा ॥
पर उनका क्या होगा, जिनके
थाली में रोटी के लाले ।
खीर कहाँ से वो लाएंगे
जिन को मिलते नहीं निवाले ॥
पूर्ण चन्द्र फिर पीड़ा देगा
फिर उन का
ललुआ तरसेगा ॥
चन्दा तो सब का है, सब पर
शीतलता, चाँदनी लुटाता ।
काश कि, चन्दा सीधे सब की
जिह्वा पर अमृत टपकाता ॥
ऐसा हो तो शरद पूर्णिमा
सार्थक; सब का
मन हरषेगा ॥
-अरुण मिश्र.

ख़ामोशी तोड़ो
सजधज के बाहर निकलो
उसी नुक्कड़ पर मिलो
जहाँ कभी बोऐ थे हमने
शरद पूर्णिमा के दिन
आँखों से रिश्ते —–
और हाँ !
बांधकर जरूर लाना
अपने दुपट्टे में
वही पुराने दिन
दोपहर की महुआ वाली छांव
रातों के कुंवारे रतजगे
आंखों में तैरते सपने
जिन्हें पकड़ने
डूबते उतराते थे अपन दोनों —–
मैं भी बाँध लाऊंगा
तुम्हारे दिये हुये रुमाल में
एक दूसरे को दिये हुए वचन
कोचिंग की कच्ची कॉपी का
वह पन्ना
जिसमें
पहली बार लगायी
लिपिस्टिक लगे होंठों के निशान
आज भी
पवित्र और सुगंधित है—–
क्योंकि अब भी तुम
मेरे लिए शरद का चाँद हो——
“ज्योति खरे”

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