गंगा तेरे घाट मिले उमापति महादेव।
विश्वनाथ सुमिरन करूं मिटे सकल संदेह।
राम राम रटता रहूं पुण्य मंदाकिनी तीर।
चित्रकूट निवास करें सीता अरू रघुबीर।
नगर द्वारिका मन बसे, नित आए सुरसेन।
कृष्ण कृष्ण सुमिरन करें, विकला मन को चैन।
पुरी नगर में वास करें सकल जगत आधार।
जगन्नाथ के नाम को लो निज मन सब धार।