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खतों में बंद खुशियों के आने-जाने की कहानी,
बहुत याद आती है मुझे डाकघर की जवानी.
कितना वीरान सा लगता ये डाकघर है,
किसी दिन ये बंद न हो जाए इसका डर है.
९ अक्टूबर विश्व डाकघर दिवस
जब चिट्ठी अपनों का संदेशा लाती थी,
संग में अपने ढेर सारी खुशियाँ लाती थी.
विश्व डाकघर दिवस की शुभकामनाएं
वक़्त बदलता है तो चीजें बदल जाती है,
खुशियों की एहसास पीछे छूट जाती है
पुरानी चीजें सिर्फ याद में रहती है
और जिन्दगी आगे निकल जाती है.
क्या खता हमसे हुई कि खत का आना बंद है,
आप है हमसे खफा या डाकखाना बंद है.
जब डाकघर से होकर कोई पत्र आता था,
बातें कम होती थी मगर एहसास ज्यादा था.
हैप्पी वर्ल्ड पोस्ट डे
माना आज भी चल रहा डाकखाना है,
मगर वहाँ लोगो का बहुत कम आना जाना है.
डाकघर भी अपने किस्मत पर फूट-फूट कर रोई,
जब सरकार को देखी कुंभकर्ण की नींद में सोई.
सरकार में दूरदर्शिता के कमी की वजह से
डाकघर बंद होने के कगार पर खड़े है.
अगर दूरदर्शिता होती तो आज ये लाखों
लोगो को रोजगार देते.
अगर सरकारी कर्मचारी अपने कार्य को नही करेंगे,
कार्यों में दूरदर्शिता और नयापन नही लायेंगे तो
आने वाले समय में हर सरकारी उपक्रम
का डाकघर जैसा ही हाल होगा.
अगर ईश्वर के पास डाकघर होता,
तो उन्हें दिल के सच्चे अरमानो का पता होता,
ना कोई बहुत ज्यादा अमीर और ना गरीब होता,
कोई मजबूर और लाचार बच्चा सड़क पर भूखा ना सोता.
कुछ दशक पहले जब किसी गाँव में डाकिया आता था.
तो वह केवल पत्र नही, वह हजारों चेहरे की खुशियाँ लाता था.
वो चिट्ठी, वो डाकघर आज भी याद आता है,
जब डाकिया साइकिल चलाकर गाँव आता है.
चिट्ठियाँ क्या थी बगावत, प्यार, मुहब्बत और माफ़ी था,
माँ की चिट्ठी आई है रूलाने के लिए इतना काफी था.
This picture was submitted by Smita Haldankar.
Tag: Smita Haldankar