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यह योगिनी एकादशी का व्रत आपके पापो से मुक्ति दिलाएँ साथ ही इस लोक के सुख भोगते हुए स्वर्ग की प्राप्ति कराये।
योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi) का हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व है. इस दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की पूजा का विधान है. मान्यता है कि योगिनी एकादशी का व्रत (Yogini Ekadashi Vrat) करने से व्रती को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है. साथ ही वह इस लोक के सुख भोगते हुए स्वर्ग की प्राप्ति करता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत करने से 28 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने का पुण्य प्राप्त होता है.
योगिनी एकादशी की पूजा विधि
– एकादशी से एक दिन पहले यानी कि दशमी तिथि से व्रत के नियमों का पालन करें.
– दशमी तिथि को सादा भोजन ग्रहण करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें.
– योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi) के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करें.
– इसके बाद स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें व्रत का संकल्प लें.
– अब घर के मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा, फोटो या कैलेंडर के सामने दीपक जलाएं.
– इसके बाद विष्णु की प्रतिमा को अक्षत, फूल, मौसमी फल, नारियल और मेवे चढ़ाएं.
– विष्णु की पूजा करते वक्त तुलसी के पत्ते अवश्य रखें.
– इसके बाद धूप दिखाकर श्री हरि विष्णु की आरती उतारें.
– अब पीपल के पेड़ की पूजा करें.
– एकादशी की कथा सुनें या सुनाएं.
– इस दिन दान करना परम कल्याणकारी माना जाता है.
– रात के समय सोना नहीं चाहिए. भगवान का भजन-कीर्तन करना चाहिए.
– अगले दिन पारण के समय किसी ब्राह्मण या गरीब को यथाशक्ति भोजन कराए और दक्षिणा देकर विदा करें.
– इसके बाद अन्न और जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें.
योगिनी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से एकादशियों के व्रत का माहात्म्य सुन रहे थे. उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से कहा, “भगवन! आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या महत्व है और इस एकादशी का नाम क्या है?” भगवान श्री कृष्ण ने कहा, “हे राजन! इस एकादशी का नाम योगिनी है. समस्त जगत में जो भी इस एकादशी के दिन विधिवत उपवास रखता है, प्रभु की पूजा करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. वह अपने जीवन में तमाम सुख-सुविधाओं, भोग-विलास का आनंद लेता है और अंत काल में उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. योगिनी एकादशी का यह उपवास तीनों लोकों में प्रसिद्ध है.” तब युद्धिष्ठर ने कहा, “प्रभु! योगिनी एकादशी के महत्व को आपके मुखारबिंद से सुनकर मेरी उत्सुकता और भी बढ़ गई है कृपया इसके बारे थोड़ा विस्तार से बताएं.” इस पर भगवान श्री कृष्ण ने कहा, “हे धर्मश्रेष्ठ! मैं पुराणों में वर्णित एक कथा सुनाता हूं उसे ध्यानपूर्वक सुनना.”
स्वर्गलोक की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम के राजा राज किया करते थे. वह बड़े ही धर्मी राजा थे और भगवान शिव के उपासक थे. आंधी आये तूफान आए कोई भी बाधा उन्हें भगवान शिव की पूजा करने से नहीं रोक सकती थी. भगवान शिव के पूजन के लिए हेम नामक एक माली फूलों की व्यवस्था करता था. वह हर रोज पूजा से पहले राजा कुबेर को फूल देकर जाया करता. हेम अपनी पत्नी विशालाक्षी से बहुत प्रेम करता था, वह बहुत सुंदर स्त्री थी. एक दिन क्या हुआ कि हेम पूजा के लिये पुष्प तो ले आया लेकिन रास्ते में उसने सोचा अभी पूजा में तो समय है क्यों न घर चला जाए. फिर उसने अपने घर की राह पकड़ ली.
घर आने बाद अपनी पत्नी को देखकर वह कामासक्त हो गया और उसके साथ रमण करने लगा. उधर, पूजा का समय बीता जा रहा था और राजा कुबेर पुष्प न आने से व्याकुल हुए जा रहे थे. जब पूजा का समय बीत गया और हेम पुष्प लेकर नहीं पंहुचा तो राजा ने अपने सैनिकों को भेजकर उसका पता लगाने के लिए कहा. सैनिकों ने लौटकर बता दिया कि महाराज वह महापापी है, महाकामी है; अपनी पत्नी के साथ रमण करने में व्यस्त था. यह सुनकर तो कुबेर का गुस्सा सांतवें आसमान पर पंहुच गया. उन्होंने तुरंत हेम को पकड़ लाने के लिए कहा. अब हेम कांपते हुए राजा कुबेर के सामने खड़ा था. क्रोधित कुबेर ने कहा, “हे नीच, महापापी! तुमने कामवश होकर भगवान शिव का अनादर किया है. मैं तूझे शाप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा.”
अब कुबेर के शाप से हेम माली भूतल पर पंहुच गया और कोढ़ग्रस्त हो गया. स्वर्गलोक में वास करते-करते उसे दुखों की अनुभूति नहीं थी, लेकिन यहां पृथ्वी पर भूख-प्यास के साथ-साथ कोढ़ से उसका सामना हो रहा था. उसे उसके दुखों का कोई अंत नजर नहीं आ रहा था. वह एक दिन घूमते-घूमते मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पंहुच गया. आश्रम की शोभा देखते ही बनती थी. ब्रह्मा की सभा के समान ही मार्कंडेय ऋषि की सभा का नजारा भी था. वह उनके चरणों में गिर पड़ा और महर्षि के पूछने पर अपनी व्यथा से उन्हें अवगत करवाया. अब ऋषि मार्कण्डेय ने कहा, “तुमने मुझसे सत्य बोला है इसलिये मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूं. आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष को योगिनी एकादशी होती है. इसका विधिपूर्वक व्रत यदि तुम करोगे तो तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जाएंगे.” अब माली ने ऋषि को साष्टांग प्रणाम किया और उनके बताए अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत किया. इस प्रकार उसे अपने शाप से छुटकारा मिला और वह फिर से अपने वास्तविक रूप में आकर अपनी स्त्री के साथ सुख से रहने लगा.
भगवान श्री कृष्ण कथा सुनाकर युधिष्ठर से कहने लगे, “हे राजन! 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात जितना पुण्य मिलता है उसके समान पुण्य की प्राप्ति योगिनी एकादशी का विधिपूर्वक उपवास रखने से होती है और व्रती इस लोक में सुख भोग कर उस लोक में मोक्ष को प्राप्त करता है.”
This picture was submitted by Smita Haldankar.
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